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Bihar Board Hindi Model Paper -1 2022
खण्ड-ब/SECTION-B
गैर-वस्तुनिष्ठ प्रश्न/Non-Objective Type Questions
1. निम्नलिखित गद्यांशों में से किसी एक गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें । प्रत्येक प्रश्न दो अंकों का होगा।
(क) देश के स्वतंत्र होने पर शासन की ओर से अनेक जन कल्याणकारीयोजनाओं का श्रीगणेश किया गया और शासकीय कर्मचारियों ने उनकी पूर्ति में भरसक योग दिया । फिर भी इस बात का अनुभव किया जा रहा है कि शासन-तंत्र में पूरी कार्य-तत्परता का अभाव है । जितनी तेजी से प्रगति की जा सकती है, उतनी हो नहीं पाती। इसके पीछे कर्मचारियों का यह दुराग्रह रहता है कि कम काम करें। कभी-कभी भ्रष्टाचार भी प्रगति के पथ में बाधक बन जाता है। देश के वर्तमान संकट में कर्मचारियों को शासन-सूत्र चलाने में पूरे उत्साह से योग देना चाहिए। क्या यह संभव नहीं है कि वे अपनी कार्यगति को बढ़ाएँ और अतिरिक्त समय में कार्य करके पिछली फाइलों को शीघ्रातिशीघ्र निबटा दें । इससे वे देश के प्रति अपनी भूमिका को अधिक सफलता से निभा सकेंगे । यह देखकर और भी आश्चर्य होता है कि शासकीय कर्मचारी ही कभी-कभी सरकार की खुली आलोचना करते हैं । राष्ट्र की कमियों के प्रति उनका भी उत्तरदायित्व है, इसे वे जैसे भूल जाते हैं । हमारा अनुरोध है कि उन्हें शासन की आलोचना न करके जनमत को सरकार के अनुकूल बनाना चाहिए । किन्तु, यह बात नहीं है कि उन्होंने इस दिशा में कुछ किया ही न हो । जबसे देश में आपात स्थिति की घोषणा की गयी, तब से वे इस दिशा में जागरूक हो गये ।
प्रश्न :
(i) देश के स्वतंत्र होने पर क्या किया गया ?
(ii) शासन-तंत्र में किस चीज का अभाव है ?
(iii) देश की प्रगति में मुख्य बाधा क्या है ?
(iv) शासकीय कर्मचारियों को क्या करना चाहिए ?
(v) आपात स्थिति का क्या लाभ हुआ ?
उत्तर:
(i) देश के स्वतंत्र होने के बाद अनेक जनकल्याणकारी योजनाओं का श्रीगणेश किया गया ।
(ii) शासन तंत्र में पूरी कार्य-तत्परता का अभाव है ।
(iii) कर्मचारियों का दुराग्रह और भ्रष्टाचार देश की प्रगति में बाधक है।
(iv) शासकीय कर्मचारियों को शासन-सूत्र चलाने में पूर्ण उत्साह से योगदान देना चाहिए। अतिरिक्त समय में पिछली फाइलों को शीघ्रातिशीघ्र निबटा देना चाहिए ।
(v) जब देश में आपात की स्थिति की घोषणा की गई तो शासकीय कर्मचारी सरकार के अनुकूल कार्य करने के लिए जागरूक हो गए।
(ख) विश्व विख्यात मैक्स मूलर का जन्म जर्मनी के डसाउ नामक नगर में 6 दिसम्बर 1823 ई० में हुआ था । जब वे चार वर्ष के हुए, उनके पिता विल्हेम मूलर की मृत्यु हो गई । पिता की मृत्यु के बाद उनके घर की आर्थिक स्थिति बड़ी दयनीय हो गई । बावजूद इसके उनकी शिक्षा – दीक्षा बाधित नहीं हुई । बचपन में ही वे संगीत के अतिरिक्त ग्रीक और लैटिन भाषा में निपुण हो गए । लैटिन भाषा में कविताएँ भी लिखने लगे । 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने संस्कृत का अध्ययन प्रारंभ किया । स्वामी विवेकानंद ने उन्हें ‘वेदांतियों का भी वेदांती’ कहा है । भारत के प्रति उनका अनुराग जग जाहिर है ।
प्रश्न :
(i) मैक्समूलर का जन्म कहाँ और कब हुआ था ?
(ii) वे कितने वर्ष के थे ? जब उनके पिता की मृत्यु हुई थी ?
(iii) पिता के मरने के बाद उनके घर की आर्थिक स्थिति कैसी हो गई ?
(iv) उनकी दयनीय आर्थिक स्थिति का उनकी शिक्षा-दीक्षा पर क्या प्रभाव पड़ा ?
(v) स्वामी विवेकानंद ने उन्हें क्या कहा ?
उत्तर:
(i) मैक्समूलर का जन्म जर्मनी के डसाउ नामक नगर में 6 दिसम्बर 182 ई० में हुआ था।
(ii) वे चार वर्ष के थे जब उनके पिता की मृत्यु हुई ।
(iii) पिता के मरने के बाद उनके घर की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई ।
(iv) उनकी दयनीय आर्थिक स्थिति से शिक्षा-दीक्षा बाधित नहीं हुई ।
(v) स्वामी विवेकानंद ने उन्हें वेदांतियों का भी वेदांती कहा ।
2. निम्नलिखित गद्यांशों में से किसी एक गद्यांश को पढ़कर नीचे दिएbगए प्रश्नों के उत्तर दें । प्रत्येक प्रश्न दो अंकों का होगा।
(क) वन्य प्राणियों के ह्रास का एक प्रमुख कारण इनका शिकार और इन्हें विभिन्न उद्देश्य के लिए फंसाना है। इनका आर्थिक महत्त्व होने के कारण इनका दोहन होता है । यद्यपि फंसाना, शिकार करना, व्यापार करना कानूनी रूप से वर्जित है, किन्तु स्थानीय, राज्य एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इनकी काला\ बाजारी एवं तस्करी हो रही है । जिसके कारण वन्य जीव का तेजी से दोहन हो रहा है । इस पर सरकार द्वारा सख्त कानूनी कार्यवाही भी की जा रही रही है। स्वयंसेवी संस्थाओं को भी आगे लाया जा रहा है और स्थानीय जनता में जागरूकता लाने की भी जरूरत है । बिहार के दरभंगा जिला का कुशेश्वरस्थान अभ्यारण्य एक अच्छा उदाहरण है, जहाँ प्रवासी पक्षियों के शिकार एवं व्यापार पर रोकथाम के लिए स्थानीय नागरिकों के सहयोग से जन-जागरण के कार्यक्रम चलाए गए हैं । जिला प्रशासन के सहयोग से युनेस्को क्लब द्वारा पक्षियों के शिकार पर प्रतिबंध लगाया गया है। जिला प्रशासन द्वारा इसके लिए यहाँ एक वाच टावर का निर्माण कराया गया है ।
प्रश्न :
(i) उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक दें ।
(ii) वन्य प्राणियों के ह्रास का प्रमुख कारण क्या है ?
(iii) वन्य प्राणियों के दोहन होने के क्या कारण हैं ?
(iv) बिहार में अभ्यारण्य कहाँ है ?
(v) पक्षियों के शिकार पर किसके द्वारा प्रतिबंध लगाया गया है ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-वन्यप्राणियों का ह्रास ।
(ii) वन्य प्राणियों के ह्रास का एक प्रमुख कारण इनका शिकार करना
और इन्हें विभिन्न उद्देश्यों के लिए फंसाना है ।
(iii) वन्य प्राणियों के आर्थिक महत्त्व होने के कारण इनका दोहन होता है।
(iv) बिहार के दरभंगा जिला के कुशेश्वरस्थान में अभ्यारण्य है ।
(v) जिला प्रशासन के सहयोग से युनेस्को क्लब द्वारा पक्षियों के शिकार पर प्रतिबंध लगाया गया है ।
(ख) सामाजिक समानता का अभिप्राय है कि सामाजिक क्षेत्र में जाति, धर्म, व्यवसाय, रंग आदि के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव न किया
जाए । सबको समान समझा जाए और सबको समान सुविधाएँ दी जाएँ । हमारे देश में सामाजिक समानता का अभाव है । जाति-प्रथा के कारण करोड़ों व्यक्ति समाज में अछूत के रूप में रहते हैं । उन्हें समाज से बहिष्कृत समझा जाता है और उन्हें सामाजिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया है । हमारे समाज में लड़कियों के साथ भी भेद-भाव बरता जाता है । माता-पिता भी उन्हें वे सुविधाएँ नहीं देते जो वे अपने लड़कों को देते हैं । इस प्रकार की असमानता से बहुत-सी लड़कियों का शारीरिक और मानसिक विकास सुचारु रूप से नहीं हो पाता । इससे समाज की उन्नति में बाधा पड़ती है । इस प्रकार की असमानता का दूर होना आवश्यक है । नागरिक समानता का अर्थ है कि राज्य में नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हों । कानून और न्यायालयों में अमीर-गरीब और ऊँच-नीच का कोई भेद न किया जाए । दंड से कोई अपराधी बच न सके । उसी प्रकार राज्य के प्रत्येक नागरिक को राज्य-कार्य में समान रूप से भाग लेने का, मत देने का, सरकारी नौकरी प्राप्त करने का तथा राज्य के ऊँचे पद को अपनी योग्यता के बल पर प्राप्त करने का अधिकार राजनीतिक समानता का द्योतक है।
प्रश्न:
(i) उपर्युक्त गद्यांश का एक समुचित शीर्षक दीजिए ।
(ii) सामाजिक समानता से क्या अभिप्राय है ?
(iii) हमारे देश में सामाजिक असमानता किस रूप में है ?
(iv) नागरिक समानता से क्या अभिप्राय है ?
(v) लड़कियों का शारीरिक और मानसिक विकास सुचारु रूप से क्यों नहीं हो पाता?
उत्तर:
(i) शीर्षक-सामाजिक समानता ।
(ii) सामाजिक क्षेत्र में जाति, धर्म, व्यवसाय, रंग आदि के आधार पर भेद-भाव न बरतना तथा सभी को समान सुविधाएँ एवं अधिकार प्रदान कराना सामाजिक समानता कहलाती है ।
(iii) हमारे देश में सामाजिक असमानता कई रूपों में दिखाई देती हैं जाति-प्रथा भी सामाजिक असमानता का एक कारण है । इस प्रथा के कारण
करोड़ों व्यक्तियों को अछूत समझा जाता है । उन्हें सामाजिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया है ।
(iv) राज्य में सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हो, उनके साथ जाति, धर्म आदि के आधार पर कोई भेद-भाव न किया जाए । गरीब-अमीर,
ऊँच-नीच सभी को समान रूप से न्यायालयों से न्याय मिले । कोई भी अपराधी दंड से बच न पाए । इस प्रकार की समानता को ही नागरिक समानता
कहते हैं।
(v) माता-पिता प्रायः लड़कियों को वे सुविधाएँ नहीं देते जो वे अपने लड़कों को देते हैं। इससे लड़कियों का शारीरिक और मानसिक विकास सुचारु
रूप से नहीं होता ।
3. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत-बिन्दुओं के आधार पर लगभग 250-300 शब्दों में निबंध लिखें:
(क) प्रदूषण
(ख) हमारा देश : भारतवर्ष
(ग) गरीबी
(घ) संचार क्रांति
(ङ) भ्रमण का महत्व
उत्तर-
(क) प्रदूषण
प्रदूषण का अर्थ है-हमारे चारों ओर की प्राकृतिक-भौतिक परिस्थितियों का बिगड़ना, प्रतिकूल होना । प्रकृति और उसका वातावरण इसलिए शुद्ध होता है ताकि पृथ्वी पर संपूर्ण प्राणिजगत जीवित रह सके । जब इसी वातावरण में जीवन के लिए आवश्यक तत्त्वों की मात्रा अपने निर्धारित अनुपात से कम हो जाती है या बढ़ जाती है तो वह असंतुलन हानिकारक हो जाता है। पर्यावरण के इसी असंतुलन को प्रदूषण कहा जाता है ।
प्रदूषण की मूल समस्या मानव-सभ्यता के विकास के साथ-साथ बढ़ी है । औद्योगिकरण, बड़े-बड़े कल-कारखानों की चिमनियों से उठनेवाला धुआँ; नगरीकरण, नगरों पर बढ़ती जनसंख्या का दबाव है दूषित व हानिकारक जल, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, यातायात के साधनों का प्रयोग आदि अनेक क्रियाकलाप हैं, जिन्होंने प्रदूषण को बढ़ाने में सहायता दी है । इसने जल, वायु और ध्वनि प्रदूषण की समस्याओं को जन्म देकर मानव जीवन को दूभर कर दिया है । हम कल्पना कर सकते हैं कि दूषित और हानिकारक रसायन से घुले-मिले जल को यदि पी लिया जाए तो तड़पकर मरने के सिवाय कोई चारा नहीं होगा। वायु का प्रदूषण तो अनेक प्रकार के चर्म-रोग, श्वास रोग, दमा, फेफड़ों का कैंसर आदि बीमारियाँ मनुष्य को प्रदान कर रहा है । वाहनों का शोर, चीखते लाउडस्पीकर, सभा-जुलूसों के नारे, हवाई जहाज और जेट विमानों की भीषण गर्जना ने रक्तचाप, सिरदर्द, अनिद्रा जैसे कई रोगों को जन्म दिया है। इससे पूर्व कि प्रदूषण की समस्या और विकराल रूप धारण कर मानव सभ्यता को पूर्णतः निगलने की तैयारी करे हमें अपनी प्रवृत्तियों में बदलाव लाना चाहिए। वनों के विनाश को रोककर अत्यधिक पेड़ लगाने चाहिए । कल-कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले धुएँ को रोकने के उपाय विकसित करने चाहिए । पेट्रोल, डीजल से चलने वाले वाहनों का उन्मुक्त प्रयोग नहीं करना चाहिए । गंदे पानी को नदियों आदि में डालने पर रोक लगानी होगी, तभी हम इस समस्या से मुक्ति पा सकते हैं । इसका स्पष्ट उदाहरण है कोरोना से मुक्ति के लिए लगाया गया लॉकडाउन । 21 मार्च 2019 से लॉकडाउन हुआ तो सारी फैक्ट्रियाँ बन्द हो गयीं जिसका असर बहती नदियाँ, गंगा का
निर्मल जल के रूप में देखने को मिला, आसमान साफ दिखाई पड़ने लगा। पक्षियों का कलरव पूर्व की भाँति सुनाई पड़ने लगा ।
पाँच जून को सारे विश्व में ‘पर्यावरण दिवस’ मनाया जाता है । मानव का भविष्य तो तभी नीरोगी, सुखी और स्वस्थ रह सकता है जब वातावरण की प्रदूषण से रक्षा हो सके ।
(ख) हमारा देश : भारतवर्ष
मेरा देश भारत संसार के देशों का सिरमौर है । यह प्रकृति की पुण्य लीलास्थली है । माँ भारती के सिर पर हिमालय मुकुट के समान शोभायमान
है । गंगा तथा यमुना इसके गले के हार हैं । दक्षिण में हिंद महासागर भारत माता के चरणों को निरंतर धोता रहता है। संसार में केवल यही एक देश है जहाँ षड्ऋतुओं का आगमन होता है। गंगा, यमुना, सतलुज, व्यास, गोमती, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी अनेक नदियाँ हैं जो अपने अमृत-जल से इस देश की धरती की प्यास शांत करती हैं।
भारत पर प्रकृति की विशेष कृपा है । यहाँ पर खनिज पदार्थों की भरमार है। अपनी अपार संपदा के कारण ही इसे ‘सोने की चिड़िया’ की संज्ञा दी गई है। धन-संपदा के कारण ही हमारा देश विदेशी आक्रमणकारियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र रहा है।
भारत की सभ्यता और संस्कृति संसार की प्राचीनतम सभ्यताओं में गिनी जाती है । मानव संस्कृति के आदिम ग्रंथ ऋग्वेद की रचना का श्रेय इसी देश को प्राप्त है। संसार की प्रायः सभी प्राचीन संस्कृतियाँ नष्ट हो चुकी हैं परंतु भारतीय संस्कृति समय की आँधियों और तूफानों का सामना करती हुई अब भी अपनी उच्चता और महानता का शंखनाद कर रही है। संगीत कला, चित्रकला, मूर्तिकला, स्थापत्य कला आदि के क्षेत्र में भी हमारी उन्नति आश्चर्य में डाल देने वाली है। जिस समय संसार का एक बड़ा भाग घुमंतू जीवन बिता रहा था, हमारा देश भारत उच्च कोटि की नागरिक सभ्यता का विकास कर चुका था । सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ सर जॉन मार्शल लिखते हैं-“सिंधु घाटी का साधारण नागरिक, सुविधाओं और विलास का जिस मात्रा में उपयोग करता था, उसकी तुलना उस समय के सभ्य संसार के दूसरे भागों से नहीं की जा सकती।”
हमारा प्यारा देश ‘विश्व गुरु’ रहा है । यहाँ की कला, ज्ञान-विज्ञान, ज्योतिष, आयुर्वेद संसार के प्रकाशदाता रहे हैं। यह देश ऋषि-मुनियों, धर्म-प्रवर्तकों तथा महान कवियों का देश है । त्याग हमारे देश का सदा से मूल-मंत्र रहा है। जिसने त्याग किया, वही महान कहलाया। बुद्ध, महावीर, दधीचि, रतिदेव, राजा शिवि, रामकृष्ण परमहंस, गाँधी इत्यादि महान विभूतियाँ इसका जीता-जागता प्रमाण हैं। हमारे देश का इतिहास गौरवमय है। तभी तो जयशंकर प्रसाद लिखते हैं-
जिएँ तो सदा इसी के लिए,
यही अभिमान रहे, यह हर्ष ।
निछावर कर दें हम सर्वस्व,
हमारा प्यारा भारतवर्ष ॥
(ग) गरीबी
भूमिका-गरीबी वैसा अभिशाप है जो जन्म से लेकर मृत्यु तक पीछा छोड़ने का नाम नहीं लेती । यह किसी क्षेत्र विशेष या देश का ही समस्या नहीं
है बल्कि यह विश्वव्यापी समस्या बनी हुई है । जीवनयापन की मूलभूत सुविधाओं का अभाव की स्थिति ही गरीबी है । गरीब व्यक्ति भोजन, वस्त्र,
आवास, चिकित्सा जैसी सुविधाओं से वंचित रहता है और अथक परिश्रम के बावजूद भी उस भँवर से नहीं निकल पाता है ।
गरीबी के कारण-गरीबी के अनेकों कारण गिने जा सकते हैं-बेरोजगारी, अशिक्षा, जनसंख्या वृद्धि आदि इसमें प्रमुख हैं । व्यक्ति को पर्याप्त रोजगार उपलब्ध नहीं होने व कम मजदूरी मिलने से वह अपनी मौलिक आवश्यकताओं को भी पूर्ण नहीं कर पाता है। उसकी आमदनी इतनी भी नहीं होती कि वह दो जून की रोटी प्राप्त कर सके । रोजगार के अभाव में उसके परिवार को कई दिनों तक भूखा रहना पड़ता है । अशिक्षा के कारण वह किंकर्तव्यविमूढ रहता है कि वह क्या करे या क्या न करे । वह कर्ज लेकर उन्नति करने की कोशिश करता है लेकिन कर्ज चुकाने के बदले कर्ज में ही आकंठ डूब जाता है । आमदनी बढ़ाने के लिए आबादी बढ़ाता है, लेकिन समस्या और भी घातक हो जाती है । बच्चे भी काम करने के लिए मजबूर हो जाते हैं ।
गरीबी उन्मूलन के उपाय-गरीबी निवारण के लिए सर्वोत्तम उपाय रोजगार के अवसर का सृजन करना है । रोजगार जितनी मात्रा में उपलब्ध होगा, आमदनी उसी अनुपात में बढ़ेगी और गरीबी दूर होगी । साथ ही शिक्षा का प्रसार, मूलभूत वस्तुओं की सस्ते दर पर पर्याप्त उपलब्धता भी इसकी भयावहता को कम कर सकती है । सरकार भी इसे दूर करने के लिए कई रोजगार योजनाएँ जैसे प्रधानमंत्री रोजगार योजना, मनरेगा आदि चला रही है, लेकिन बढ़ती हुई आबादी के कारण ये योजनाएँ कम पड़ रही हैं ।
निष्कर्ष-अंत में निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि गरीबी एक बहुत बड़ीऔर भयंकर सामाजिक व आर्थिक समस्या है, जिसके प्रभाव को योजनाबद्ध तरीके से कम अथवा समाप्त के उपाय करना होगा ।
(घ) संचार क्रांति
भूमिका : वर्तमान युग संचार क्रांति का युग है । संचार क्रांति की इस प्रक्रिया में जनसंचार माध्यमों के भी आयाम में परिवर्तन हुए हैं । आज की
वैश्विक अवधारणा के अन्तर्गत सूचना एक हथियार के रूप में परिवर्तित की गई है।
संचार क्रांति का स्वरूप : आज का सूचना जगत गतिमान हो गया है इसका व्यापक प्रभाव जनसंचार माध्यमों पर पड़ा है । पारंपरिक संचार माध्यमों, समाचार पत्र, रेडियो और टेलिविजन की जगह वेब मीडिया ने ले ली है। वेब पत्रकारिता आज समाचार पत्र-पत्रिका का एक बेहतर विकल्प बन चुका है न्यू मीडिया, ऑनलाइन मीडिया, साइबर जर्नलिज्म और वेब जर्नलिज्म जैसे कई नामों से वेब पत्रकारिता को जाना जाता है । वेब पत्रकारिता प्रिंट और ब्रॉडकास्टिंग मीडिया का मिला-जुला रूप है । यह टेक्स्ट, पिक्चर्स, ऑडियो और विडियो के जरिए स्क्रीन पर हमारे सामने है । माउस के सिर्फ एक क्लिक से किसी भी खबर या सूचना को पढ़ा जा सकता है । यह सुविधा 24 घंटे और सातों दिन उपलब्ध होती है जिसके लिए किसी प्रकार का मूल्य नहीं चुकाना पड़ता ।
संचार क्रांति से लाभ : भारत में वेब पत्रकारिता को लगभग एक दशक बीत चुका है। हाल में ही आए ताजा आंकड़ों के अनुसार इंटरनेट के उपयोग के मामले में भारत तीसरे पायदान पर आ चुका है । आधुनिक तकनीक के जरिए इंटरनेट की पहुँच घर-घर हो गई है । युवाओं पर इसका प्रभाव अधिक दिखाई देता है । वेब पत्रकारिता के बढ़ते विस्तार के कारण न मालूम कितने लोगों को रोजगार मिल रहा है। मीडिया के विस्तार ने वेब डेवलपरों एवं वेब पत्रकारों की मांग को बढ़ा दिया है । वेब पत्रकारिता किसी अखबार को प्रकाशित करने और किसी चैनल को प्रसारित करने से अधिक सस्ता माध्यम है । चैनल अपनी वेबसाइट बनाकर उन पर ब्रेकिंग न्यूज, स्टोरी, आर्टिकल, रिपोर्ट, विडियो या साक्षात्कार को अपलोड और अपडेट करते रहते हैं । आज सभी प्रमुख चैनलों (आईबीएन, स्टार, आज तक आदि) और अखबारों ने अपनी वेबसाइट बनाई हुई है। इनके लिए पत्रकारों की नियुक्ति भी अलग से की जाती है। अतः संचार क्रांति से कई लाभों की प्राप्ति हुई है।
संचार क्रांति से हानि ? मानव के लिए संचार क्रांति कितनी ही उपयोगी क्यों न हो इससे अन्य जानवरों को काफी हानि उठानी पड़ रही है । फोन के रेडिएशन्स से प्राणियों की संख्या दिनानुदिन कम हो रही है । चिड़ियों की रेडिएशन से मौत हो रही है । जब मोबाइल खराब हो जाता है तो मोबाइल पार्ट्स खुले में हम फेंक देते हैं । खुले में मोबाइल पार्ट्स को खाकर गायें मर रही हैं। बच्चों की आँखें खराब हो रही हैं । इसका दिमाग पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है । इसने साइबर क्राइम को भी बढ़ावा दिया है ।
निष्कर्ष : संचार क्रांति की हानि तो अनेक हैं किन्तु लाभ भी तो अनेकानेक हैं । फिर बदलते समय के साथ हमें भी तो परिवर्तन के लिए तैयार रहना ही पड़ेगा । किसी भी सफलता के लिए कुछ कीमत तो चुकानी ही पड़ती
है । अतः तमाम खतरों के बावजूद संचार क्रांति से हम अब अछूते नहीं रह सकते ।
(ङ) भ्रमण का महत्व
मानव जीवन बहुत छोटा है । उसकी तुलना में प्रकृति का चित्रपट बहुत विशाल है। मनोरम वन प्रदेश, नभस्पर्शी पर्वत श्रेणियाँ, समुद्र का उत्ताल
तंरगित विस्तार, मनुष्य निर्मित आश्चर्यजनक वस्तुएँ, अनेकानेक संस्कृतियाँ, भाषा-भूषा आदि कितनी ही दर्शनीय वस्तुएँ संसार में उपस्थित हैं। मनुष्य चाहे तो सारी आयु घूमता रहे फिर भी सबको न देख पाये। जिज्ञासा और उत्सुकता ने मनुष्य को सदा ही भ्रमण के लिए प्रेरित किया है। वह घूमता रहा है और आगे भी घूमता रहेगा।
मनुष्य सदैव नवीनता और विचित्रता के प्रति आकर्षित रहा है । नई वस्तुएँ, नये व्यक्ति, नये स्थान, नये दृश्य उसे विश्व के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचाते रहे हैं । यद्यपि देश-देशान्तरों में भ्रमण करना स्वयं में ही एक
मनोरंजक उद्देश्य है तथापि लोक अपनी रुचि और आवश्यकताओं के अनुसार भ्रमण किया करते हैं । छात्र अपने शैक्षिण ज्ञानवर्द्धन के लिए, वैज्ञानिक अन्वेषण एवं तथ्य दर्शन के लिए, व्यापारी व्यावसायिक दृष्टिकोण से, इतिहासवेत्ता ऐतिहासिक स्थलों के निरीक्षण के लिए और सामान्य लोग केवल मनोरंजन के लिए पर्यटन करते हैं।
प्राचीन समय में भ्रमण को एक साहसिक कार्य समझा जाता था । विदेशों की बात तो दूर, अपने ही देश में भ्रमण करना भी जोखिम भरी बात थी । आने-जाने के साधन सीमित थे । साधु-सन्त या फिर वृद्ध लोग ही तीर्थयात्रा
को लक्ष्य बनाकर देशाटन किया करते थे । लेकिन देश और विदेशों में अनेक साहसी लोग हुए हैं जिन्होंने प्राचीन और मध्यकाल में दूर-दूर तक साहसपूर्ण यात्राएँ की । महर्षि अगस्त्य ने दुर्गम विंध्य पर्वत को लाँघकर सर्वप्रथम दक्षिण भारत की यात्रा की । उन्होंने भारत से बाहर भी समुद्र-मार्ग से दक्षिण पूर्वी देशों में भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया ।
आज तो भ्रमण अत्यंत सुगम हो गया है । अनेक प्रकार के वाहन उपलब्ध
हैं । प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों पर आधुनिक सुविधासम्पन्न विश्राम गृह और होटल हैं । दुर्गम से दुर्गम स्थलों तक पहुँचने की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। लेकिन सभी सुविधाओं का सहारा लेकर पर्यटन करने में वह रोमांच और आनन्द नहीं । आज भी अनेक लोग रोमांचक तथा साहसिक अभियानों में भाग लेते हैं । भ्रमण अब एक व्यवस्थित व्यवसाय का रूप ले चुका है। लाखों पर्यटक संसार में भ्रमण करते देखे जा सकते हैं । इनकी सुविधा के लिए अनेक पर्यटन एजेन्सियाँ खुली हैं जो कि देश-विदेश में भ्रमण का प्रबन्ध करती हैं । पर्यटक लोग मनोरंज, ज्ञानवर्द्धन तथा पारस्परिक सम्पर्क वृद्धि का लाभ प्राप्त करते हैं। एक दूसरे के निकट सम्पर्क में आते हैं, एक-दूसरे के विचारों, संस्कृतियों और जीवन-शैलियों से परिचित होते हैं
व्यवसायी लोग व्यवसाय के नये क्षेत्रों तथा नयी वस्तुओं से परिचित होते हैं । पर्यटक लोग भी खरीददारी करते हैं । होटलों में ठहरते हैं । वाहनों का प्रयोग करते हैं । इस प्रकार पर्यटन से व्यवसायी भी लाभान्वित होते हैं । सरकार को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है । दर्शनीय स्थलों और इमारतों पर प्रवेश-शुल्क लगाकर भी वह पर्यटकों से धन प्राप्त करती है ।
एक शायर ने कहा है-
सैर कर दुनिया की गाफिल, जिंदगानी फिर कहाँ
जिंदगी रह भी गई तो नौजवानी फिर कहाँ ॥
कथन तो सुन्दर है परन्तु आज की परिस्थितियों में दो ही व्यक्ति दुनिया की सैर कर सकते हैं, धनवान या मनवान । धनिकों के लिए देशाटन बड़ा
सुलभ और आनन्ददायक है । सारी सुविधाएँ उनके कदमों पर हाजिर करा दी जाती हैं। अगर धन नहीं तो फिर मन का मोह त्याग कर घर से निकल पड़ो। विदेश में नहीं तो कम से कम देश में तो ‘अटन’ (घूमना-फिरना) कर ही लोगे । फिर भी मनुष्य को पर्यटन का अवसर मिले तो उसका पूरा लाभ उठाना चाहिए ।
4. कुसंगति से बचने की शिक्षा देते हुए अपने अनुज को पत्र लिखिए।
अथवा
कोरोना महामारी से सुरक्षा के बारे में दो छात्रों के बीच संवाद लिखें।
उत्तर-
हाजीपुर
ता० 22-02-2022
प्रिय अनुज स्नेहाशीष,
पिताजी का पत्र मिला । पढ़कर मन चिन्ताग्रस्त हो गया । आश्चर्य भीहुआ, यह सोचकर कि तुम्हारे जैसा बुद्धिमान विद्यार्थी भी कुसंगत में पड़ सकता है । तुम तो जानते हो कि मित्रों का जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। इसलिए यदि तुम बुरे मित्रों के साथ रहोगे तो उनके दुष्प्रभावों से बच नहीं सकते ।
तुम्हें तो ज्ञात है कि बीता हुआ समय कभी लौटकर नहीं आता । अतः समय रहते ही सँभल जाओ और इस असलियत से परिचित हो जाओ कि जिन्हें तुम अपना मित्र समझते हो वे वास्तव में विष भरे कनक घट के समान हैं जो तुम्हारे जीवन को पंगु बनाकर छोड़ेंगे ।
मेरे समझदार भाई अभी भी देर नहीं हुई है । तुम शीघ्रातिशीघ्र अपने इन दुष्ट मित्रों से किनारा करके अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो । हम सभी की
शुभकामनाएँ तुम्हारे साथ हैं ।
तुम्हारा अग्रज
आशीष
अथवा
अजय : यार, यह कोरोनावायरस का प्रकोप तो बहुत ज्यादा फैल गया है, मुझे तो बड़ा डर लग रहा है ।
मोहन: हाँ, डरने की तो बात ही है । यह ऐसी महामारी है, जिसका अभी तक कोई इलाज नहीं मिल पाया है। ऐसे में इस
बीमारी से डरने वाली बात स्वाभाविक है।
अजय : अब क्या होगा?
मोहन : भले ही इसका इलाज नहीं है, लेकिन हम इस वायरस के संक्रमण को फैलने से रोक सकते हैं। किसी भी रोग को
होने की नौबत ना आने देना यानी रोग से बचाव भी एक अच्छा उपाय है।
अजय: इसी कारण हमारे देश की सरकार ने लॉकडाउन किया था ताकि संक्रमण पूरे देश में न फैल सके ।
मोहन : बिल्कुल सही । हमारे देश में ही नहीं विश्व के अनेक देशों में लॉकडाउन चल रहा है । हालांकि कुछ देशों ने देर से
लॉकडाउन आरंभ किया, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा।
अजय : परंतु हमारे देश में तो एकदम सही समय पर लॉकडाउन का निर्णय ले लिया गया था ।
मोहन : बिल्कुल सही । इसी कारण आज हमारे देश में कोरोना महामारी का संक्रमण इतने बड़े स्तर पर नहीं फैल पाया ।
लॉकडाउन करने का लाभ हुआ ।
5. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20-30 शब्दों में दें:
(क) जाति भारतीय समाज में श्रम विभाजन का स्वाभाविक रूप क्यों नहीं कही जा सकती है?
उत्तर-भारतीय समाज में जाति श्रम-विभाजन का स्वाभाविक रूप नहीं है क्योंकि यह मनुष्य की रुचि और क्षमता पर आधारित नहीं है । मनुष्य के प्रशिक्षण या उसकी निजी क्षमता पर विचार नहीं कर उसको वंशानुगत पेशा में ही जीने-मरने के लिए विवश कर दिया जाता है
(ख) लेखक की दृष्टि में हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-लेखक की दृष्टि में हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता यह है कि वह ‘स्व’ के बंधन से बंधा हुआ है। जैसे–स्वतंत्रता, स्वराज्य, स्वाधीनता
आदि। अपने-आप पर अपने-आपके द्वारा लगाया हुआ बंधन हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता है।
(ग) ‘संगीतमय कचौड़ी’ का आप क्या अर्थ समझते हैं ?
उत्तर-प्रस्तुत पाठ में बताया गया है कि उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ को कुलसुम की देशी घी वाली दुकान की ‘संगीतमय कचौड़ी’ अत्यंत प्रिय थी।
यहाँ ‘संगीतमय कचौड़ी’ से आशय यह है कि कुलसुम द्वारा कलकलाते घी में कचौड़ी के डाले जाने पर उससे उठने वाली छन्न-छन्न की-सी संगीतमयी आवाज होती थी, जिसमें बिस्मिल्ला खाँ को संगीत के सारे आरोह-अवरोह महसूस होते थे।
(घ) बिरजू महाराज कौन-कौन से वाद्य बजाते थे?
उत्तर-बिरजू महाराज सितार, गिटार, हारमोनियम, तबला और सरोद आदि वाद्य बजाते थे।
(ङ) कवि किसके बिना जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानता है?
उत्तर-कवि राम-नाम के बिना जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानता है राम-नाम के बिना व्यतीत होने वाला जीवन केवल विष का भोग करता है।
(च) भारतमाता’ कविता में कवि भारतवासियों का कैसा चित्र खींचता है?
उत्तर-कविता में भारतवासियों की विक्षुब्धता, उदासी, दीनता आदि का सजीवात्मक चित्रण किया गया है। सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाली भारतमाता की संतान अर्द्धनग्न और भूखी है। सामंतवादियों के द्वारा शोषित है। अशिक्षा, निर्धनता आदि के लिए किसी तरह जीवन ढोने के लिए भारतवासी विवश हैं
(छ) हिरोशिमा में मनुष्य की साखी के रूप में क्या है ?
उत्तर-हिरोशिमा में मनुष्य की साखी (साक्षी) के रूप में अमेरिका द्वारा गिराया गया परमाणु बम है। वर्षों बीत जाने के बाद भी हिरोशिमा वासी इस त्रासदी का दंश झेलने के लिए विवश है। साक्ष्य के रूप में उपस्थित रहने वाला वह काला दिवस आज भी सिहरन पैदा करता है।
(ज) बेटे को आँसू कब आते हैं और क्यों ?
उत्तर-बेटा माँ की गोद में बैठना चाहता है। ‘ङ’ अक्षर सीखने में विफलता आ जाती है। बार-बार कोशिश करने पर भी सफलता हाथ नहीं लगती है। हताश और विवश होकर अनायास रो पड़ता है। ‘ङ’ अक्षर-ज्ञान की विफलता पर ही बेटे को आँसू आ जाते हैं।
(झ) बहू ने सास को मनाने के लिए कौन-सा तरीका अपनाया?
उत्तर-जब बहू को रंगप्पा के द्वारा ज्ञात हुआ कि उसकी सास ने रंगप्पा को कर्ज देने की स्वीकृति प्रदान की है तब उसने बेटे को ढाल बनाकर पैसे
लेने की तरकीब सोचने लगी । वह जानती है कि उसकी सास अपने पोते से बहुत प्यार करती है । अतः अपने बेटे को दादी के पास ही रहने के लिए
भेज दिया।
(ञ) दलेई बाँध की सुरक्षा के लिए कौन-कौन से उपाय किए जा रहे हैं ?
उत्तर-दलेई बाँध की सुरक्षा के लिए स्वयंसेवक दल का गठन किया गया है । गाँव के लड़के बारी-बारी से दलेई बाँध की निगरानी कर रहे हैं। बाँध
के कमजोर स्थानों पर मिट्टी डाली जा रही है । बाँध को और मजबूत करने के लिए पत्थर ढोये जा रहे हैं। रेत की बोरियाँ इकट्ठी की जा रही हैं। कहीं
बाढ़ का पानी बाँध न तोड़ दे, इसलिए रतजगा हो रहा है ।
6. निम्नलिखित प्रश्नों में से किसी एक प्रश्न का उत्तर लिखिए (शब्द सीमा लगभग 100) :
(क) मदन और ड्राइवर के बीच के विवाद के द्वारा कहानीकार क्या बताना चाहता है ?
उत्तर-मदन और ड्राइवर के बीच के विवाद के द्वारा कहानीकार ने आर्थिक विषमता को उजागर किया है। मदन एक साधारण किरानी का बेटा है, उसमें जीवटता और प्रतिकार करने की क्षमता है किन्तु ड्राइवर सेन परिवार का अंग माना जाता है। मदन के द्वारा ड्राइवर का प्रतिकार करना निश्चय ही सेन परिवार का प्रतिकार करना है। वस्तुतः यहाँ लेखक ने दो परिवारों की आर्थिक स्थिति, हैसियत, मनोवैज्ञानिक सोच एवं सामाजिक विसंगतियों के बीच जीवन-यापन करने वाले मनुष्य का यथार्थ चित्रण किया है।
(ख) निम्न पंक्तियों का अर्थ लिखें
“गमले-सा टूटता हुआ उसका ‘ग’ ।
घड़े-सा लुढ़कता हुआ उसका ‘घ’।
उत्तर-प्रस्तुत पंक्ति में कवयित्री शिशु के अक्षर-ज्ञान की प्रारंभिक शिक्षण-प्रक्रिया के कौतुकपूर्ण चित्रण करती है। शिशु ‘क’ से कबूतर, ‘ख’
से खरगोश सीखने के उपरान्त ‘ग’ से गमला सीखना चाहता है। तभी उसका गमला इधर-उधर हो जाता है। ‘घ’ से घड़ा लिखते हुए घड़ा
लुढ़क जाता है। वस्तुतः यहाँ कवयित्री कहना चाहती है कि अक्षर-ज्ञान में शिशु की मनोदशाएँ विक्षुब्ध हो जाती हैं। उसका मन इधर-उधर भटकने
लगता है। वह अनमना-सा ‘ग’ से गमला और ‘घ’ से घड़ा पढ़ना-लिखना
चाहता है।